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Arjunkotri ( President Bajrang Dal Kotri, )

Bajrang dal kotri

Distict Ajmer ( Rajsthan ) ( India )

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आरती

 कुंज बिहारी की आरती

Kunjbihariआरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला।
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला।
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली ।
लतन में ठाढ़े बनमाली;भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक,
चंद्र सी झलक;ललित छवि श्यामा प्यारी की ॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की...
कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं ।
गगन सों सुमन रासि बरसै;बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग,
ग्वालिन संग;अतुल रति गोप कुमारी की ॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की...
जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा ।
स्मरन ते होत मोह भंगा;बसी सिव सीस, जटा के बीच,
हरै अघ कीच;चरन छवि श्रीबनवारी की ॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की...
चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू ।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू;हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद,
कटत भव फंद;टेर सुन दीन भिखारी की ॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की

Hanumanमनोजवं मारुत तुल्यवेगं ,जितेन्द्रियं,बुद्धिमतां वरिष्ठम् |
वातात्मजं वानरयुथ मुख्यं , श्रीरामदुतं शरणम प्रपद्धे ||
आरती किजे हनुमान लला की | दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥
जाके बल से गिरवर काँपे | रोग दोष जाके निकट ना झाँके ॥
अंजनी पुत्र महा बलदाई | संतन के प्रभु सदा सहाई ॥
दे वीरा रघुनाथ पठाये | लंका जाये सिया सुधी लाये ॥
लंका सी कोट संमदर सी खाई | जात पवनसुत बार न लाई ॥
लंका जारि असुर संहारे | सियाराम जी के काज सँवारे ॥
लक्ष्मण मुर्छित पडे सकारे | आनि संजिवन प्राण उबारे ॥
पैठि पताल तोरि जम कारे| अहिरावन की भुजा उखारे ॥
बायें भुजा असुर दल मारे | दाहीने भुजा सब संत जन उबारे ॥
सुर नर मुनि जन आरती उतारे | जै जै जै हनुमान उचारे ॥
कचंन थाल कपूर लौ छाई | आरती करत अंजनी माई ॥
जो हनुमान जी की आरती गाये | बसहिं बैकुंठ परम पद पायै ॥
लंका विध्वंश किये रघुराई | तुलसीदास स्वामी किर्ती गाई ॥
आरती किजे हनुमान लला की | दुष्ट दलन रघुनाथ कला की



SaiBabaKi Artiश्री साई बाबा की आरती

SaiBabaसौख्यदातारा जीवा ।चरणरजतळीं निज दासां विसावां ।
भक्तां विसावा ॥धृ॥
जाळुनियां अनंग ।स्वस्वरुपी राहे दंग ।
मुमुक्षुजना दावी ।निजडोळां श्रीरंग ॥१॥
जया मनीं जैसा भाव ।तया तैसा अनुभव ।
दाविसी दयाघना ।ऐसी ही तुझी माव ॥२॥
तुमचें नाम ध्यातां ।हरे संसृतिव्यथा ।
अगाध तव करणी ।मार्ग दाविसी अनाथा ॥३॥
कलियुगीं अवतार ।सगुणब्रह्म साचार ।
अवतीर्ण झालासे ।स्वामी दत्त दिगंबर ॥४॥
आठा दिवसां गुरुवारी ।भक्त करिती वारी ।
प्रभुपद पहावया ।भवभय निवारी ॥५॥
माझा निजद्रव्य ठेवा ।तव चरणसेवा ।
मागणें हेंचि आता ।तुम्हा देवाधिदेवा ॥६॥
इच्छित दीन चातक ।निर्मळ तोय निजसुख ।
पाजावें माधवा या ।सांभाळ आपुली भाक ॥७













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